G-GE9JD7T865 Eddington and Einstein Movie review in Hindi (Svience v/s Sprituality )

Eddington and Einstein Movie review in Hindi (Svience v/s Sprituality )



वार्निंग - यह फिल्मी रिवीव नहीं। फ़िल्म के परिदृश्य से बस इतना कह सकता हूँ कि फ़िल्म काफी अच्छी है लेकिन पहली बार किसी फिल्म के बारे में लिखने का उद्देश्य कुछ और है। पूरा पढ़िए उद्देश्य समझ आ जायेगा। बस इतना कह सकता हूँ कि ये रिवीव उनके बहुत काम सकता है जो सच की तलाश में भटक रहे हैं। 



नोट - यह फ़िल्म महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन और सर आर्थर एडिंगटन के रिश्ते की कहानी है  और आपके अध्यात्म और विज्ञान पर विचार को समझाने की कोशिश करेगी।


फ़िल्म की शुरुआत अल्बर्ट आईन्स्टीन के एक उलझन से शुरू होती है ,  जो ये है कि अगर हम एक चलती नाव से कुछ फेके तो उसकी गति नाव की गति + और फेकने की गति के बराबर होगी ( गणित का साधारण सा प्रॉब्लम , जो हम स्कूल के दिनों में धारा के अनुकूल नाव की चाल और धारा के प्रतिकूल नाव की चाल वाले समस्या को हल करते थे, जिसमें अनुकूल की दशा में दोनों चाल जुड़ जाती थी और प्रतिकूल की दशा में चाल घट जाती थी)। अब सवाल यह है कि यह साधारण सी समस्या आईन्सटीन को परेशान क्यो कर रही थी? इसके जवाब के लिए फ़िल्म से हटके मैं अतीत के कुछ रहस्य उजागर करना चाहता हूँ।


आर्यभट्ट ने सालों पहले ये बताया कि यह हमारी पृथ्वी स्थिर नहीं है यह घूम रही है, क्योंकि आर्यभट्ट को नियत समय पर दिन रात का होना और मौसम का एक नियत समय पर बदला जाना खटकता था और वो इस निष्कर्ष पर पँहुचे की इसका एक ही कारण हो सकता है कि पृथ्वी घूम रही है, जो कि हिन्दू धर्म के चिर स्थायी सिद्धान्त ( पृथ्वी किसी सिंग या नाग के फन पर टिकी हुई है, जरा सा हिलने पर प्रलय आ जायेगा, भूकम्प उनके करवट बदलने के कारण आता है ) से सीधे टक्कर में हो गयी और आर्यभट्ट के निष्कर्ष का धर्म ने अच्छे से कुटाई कर दी। 

सैकड़ों सालों बीत गए और एक बार फिर धर्म और इंसान की परिकल्पना के दो दो हाथ हो गए। हुआ यूं कि अब यूरोप में गैलीलियो ने बोल दिया कि पृथ्वी स्थिर नहीं है और न ही ये ब्रह्मांड का केंद्र है। यह सूरज का चक्कर लगा रही है ( सभी अब्राह्मिम धर्म - ईसाई, यहूदी, इस्लाम का मानना है कि सूर्य पृथ्वी का चक्कर लगाता है)। नतीजा फिर वही हुआ चर्च (धर्म) ने गैलीलियो की कुटाई कर दी उसे नजरबंद कर दिया। लेकिन गैलोलियो का एक आविष्कार दुनिया बदलने वाला था, जो था दूरबीन।

दूरबीन से इंसान अंतरिक्ष मे ताका झांकी करना शुरू किया। 17वी शाताब्दी में एक लड़का इन तमाम धर्म के हाथों हुई कुटाई का बदला लेने वाला था, वो लड़का था न्यूटन।

न्यूटन एक एकांत प्रिय व्यक्ति ,उसके दिमाग मे जो भी प्रश्न खड़े हुए उसने उसके तह तक जाने की ठान ली। उसे गणित में बड़े कैलकुलेशन की समस्या हुई तो उसने पूरी कैलकुलस ही लीख डाला, जो एक सूत्र मात्र से किसी भी बड़े डेटा को एक दम छोटा (डिफरेंशियल) या एक छोटे डेटा को मनचाहा बड़ा ( इंटीग्रेशन)कर सकता था। कुल मिलाकर वो था बहुत ज़िद्दी , आसानी से हार नहीं मानता था और उसके इसी जिद्द ने  एक बड़ा खोज दिया जो था ग्रेविटी। ग्रेविटी एक ऐसा तुरुप का इक्का साबित हुआ जो मनुष्य के हर सवालों का जवाब देता गया। अद्द्योगिकीकरण और इस तुरप के इक्के ने विज्ञान के पंख लगा दिए। न्यूटन ने बोला समय एब्सोल्यूट (निश्चित ) है। गैलिलीयो के दूरबीन की मदद से पता किये गए जुपिटर के मून के एक्लिप्स ( ग्रहण ) के मदद से ओले रोमर ने पहली बार प्रकाश की गति को नापा। सालो बाद क्लार्क मैस्कवेल ने प्रकाश की गति मैथमैटिकली एक्यूरेट ( सही सही) नापा ( 3 लाख मीटर / सेकेंड ) और यह भी बताया कि प्रकाश की गति नियत है पूरे ब्रह्मांड में किसी भी परिस्थिति में । सवाल यहीं खत्म नहीं होता , न्यूटन से सवाल किए गए ग्रेविटी का कारण क्या है? न्यूटन इस सवाल का जवाब नहीं खोज पाए उन्हें हारकर करना पड़ा कोई अदृश्य ताकत ( ईश्वर ) है जो इस ब्रह्मांड को और इसकी ग्रेविटी को चला रहा है। 

हमें अतीत से पता चला ग्रेविटी और उसको चलाने वाली अदृश्य ताकत, समय निश्चित है ,  प्रकाश की गति और उसका नियत होना।यही। बाते आईन्स्टीन के पेट का दर्द बन रही थी।


अब आते है आईन्स्टीन और उसके नाव की समस्या पर। आईन्स्टीन के दिमाग मे एक परिकल्पना बन रही थी जो उनके रातों की नींद , उनका वैवाहिक जीवन औए दिन का चैन सबकुछ दाव पर लगा रही थी। वो परिकल्पना यह थी -

अगर हम नाव पर खड़े हो कर एक टोर्च जलाए तो क्या होना चाहिए? नियम के हिसाब से टॉर्च से  निकलने वाली प्रकाश की गति" तीन लाख मिटर प्रति सेकेंड + नाव की गति " के बराबर होनी चाहिए। लेकिन ऐसा हुआ तो क्लार्क मैक्सवेल का कैलकुलेशन की प्रकाश की गति कभी नहीं बदल सकती , नियत है, गलत है। आईन्स्टीन ने सच जानने को दूसरी परिकल्पना किया कि अगर मैं प्रकाश की गति से प्रकाश के बगल में दौडूं तो प्रकाश मेरे सापेक्ष स्थिर दिखेगा। लेकिन ये भी सम्भव नहीं था क्योंकि यह सिद्ध था कि प्रकाश इलेक्ट्रो मैग्नेटिके वेव के रूप में चलता है और वेव जब स्थिर होगा तो वेव नेचर खो देगा जो कि प्रकाश के लिए सम्भव नहीं है। निष्कर्ष यह निकला कि प्रकाश को गति से चला नहीं जा सकता और ना ही प्रकाश की गति नियत है वाला सिद्धान्त गलत है। अब आ कर बात अटक गई  न्यूटन के समय फिक्स है वाले बात पर जो कि आईन्स्टीन की इस परिकल्पना के हिसाब से गलत साबित हो रही थी, क्योंकि अगर प्रकाश की गति फिक्स है तो नाव पर रखे टार्च से निकलने वाले प्रकाश की गति में बदलाव न होने का कारण यही है कि उसके लिए समय धीमा हो रहा है ( चाल = दूरी/ समय में अगर चाल फिक्स है , उससे चलने वाली दूरी भी फिक्स होगी जिसका साधारण सा मतलब है कि समय ही है जो नाव के गति के अनुसार खुद को एडजस्ट कर रहा है जिससे की चाल नियत रहे)।

आईन्स्टीन को ये अभी तक नहीं समझ आया था कि ऐसा क्यों है और उन्होंने इस परिकल्पना को  "स्पेशल थ्योरी आफ रिलेटविटी" के नाम से पब्लिश कराया।

किसी के भी जीवन एक पेरपेचुअल मोशन में नहीं चलता और यही आईन्स्टीन के साथ भी होने वाला था।

विश्व युद्ध शुरू हो रहा था। आईन्स्टीन को मैक्स प्लैंक ( प्लैंक नियतांक वाले) ने यूनिवर्सटी ऑफ बर्लिन ( जर्मनी) जॉइन करने का न्योता भेजा। आईन्स्टीन ने मान लिया। आईन्स्टीन बर्लिन आ गए और उधर इंग्लैंड में एडिंगटन की नींद आईन्स्टीन की परिकल्पना ने उड़ा रखी थी। बाकी इंग्लैंड के वैज्ञानिक एक जर्मन साईन्सटिस्ट के थ्योरी जो न्यूटन को गलत साबित कर रहा हो हजम नहीं कर पा रहे थे। एडिंगटन ही एक मात्र थे जिनको आईन्स्टीन के थ्योरी ने सोचने पर मजबूर किया। एडिंगटन एक क्वैकर समुदाय के व्यक्ति थे , सेना ,युद्ध और हिंसा के सख्त खिलाफ क्योंकि उनका धर्म इन चीज़ों की किसी भी दशा में इजाजत नहीं देता था। वो इंग्लैंड के सबसे बड़े एक्सप्लोरर थे। उनको एक बात खटक रही थी मर्करी ( बुध ग्रह ) का बाकी ग्रहों से अलग व्यवहार। जिसका जवाब उनको आईन्स्टीन की परिकल्पना में दिख रहा था। ( अगर मैं बुध ग्रह के अलग व्यवहार की बात करूं तो ये काफी जटिल है फिर भी मैं आसान भाषा मे मोटी मोटा समझा देता हूँ, अगर एक साथ सारे ग्रहों  की परिक्रमा को रोका जाए तो तो लगभग सभी ग्रह रूक जाएंगे, लेकिन बुध कैलकुलेशन के हिसाब से कुछ चक्कर लगा के रुकेगा , जो कि कैसे सम्भव है? ये एक्स्ट्रा एनर्जी कहां से आएगी ? कैसे बनेगी? अगर ऐसा नहीं होंगा तो जरूर कैलकुलेशन में कुछ गलत है, जो कि था समय का सबके लिए नियत होना , जरूर बुध के लिए समय कुछ और तरीके से काम कर रहा है)


एडिंगटन ने एक चिट्ठी आईन्स्टीन को लिख डाला। आईन्स्टीन ने इसपे कैलकुलेशन किया और कैलकुलेशन दो चीजों को इशारा कर रहे थे- 

1- टाइम डायलेशन ( समय का बदलना)

2- लेंथ कन्ट्रेक्शन ( लेंथ का संकुचित हो जाना, जितना गति उतना संकुचन)

लेकिन क्यों? अब भो कोई जवाब नहीं।


आगे की कहानी जीवन का सच है और जीवन जीने का तरीका सिखाने वाली है।

बर्लिन यूनिवरसिटी के 93 दिग्गज ( जिसमें प्लैंक भी थे) दुनिया भर के वैज्ञानिकों को चैलेंज देते हैं जर्मनी की अधीनता स्वीकार करने को। आईन्स्टीन उसपे सिग्नेचर नहीं करते ये कहते हुए मैं सिर्फ एक वैज्ञानिक हूँ  जिसका काम है इस ब्रह्मांड का सच जानना मुझे इन पचड़ों में नहीं पड़ना। लेकिन आईन्स्टीन एक सच  से अनजान थे वो यह था कि बर्लिन यूनिवर्सिटी का केमिस्ट्री  विभाग क्लोरीन जैसी जहरीली गैस का निर्माण कर रही थी और उसकी टेस्टिंग कबूतरों पर की जाती थी। आईन्स्टीन ने जब ये देखा तो उन्होंने नाराजगी जाहिर की लेकिन ये न समझ पाए कि इसका इस्तेमाल जर्मन सेना इंसानों पर करने वाली है। 


युद्ध आगे बढ़ रहा था औए एक दिन मानव इतिहास का काला सच सामने आया।  इपरस में जर्मन सेना ने उस गैस का इस्तेमाल किया एक झटके में मिनटों में 15 हजात लोग दम घुट कर मारे गए । मारे जाने वालों में ब्रिटश साइंटिस्ट सोसायटी के हेड का बेटा भी मारा गया और एडिंगटन का इकलौता दोस्त विलियम्स भी।

एडिंगटन रोते हुए कहते हैं - वेयर वाज गॉड इन इपरस ? ( इपरस में ईश्वर कहां था).... इसके परिणाम भयावह होने वाले थे। इधर इंग्लैंड में बदले के भावना से सभी जर्मन शोध पेपरों को लाइब्रेरी से निकाल दिया गया, किसी भी जर्मन वैज्ञानिक से सम्पर्क करना ग़ैरकानूनी बना दिया गया। इसके पक्ष में मोशन जारी किए गए जिसके खिलाफ वोट करने वाले इकलौते वैज्ञानिक थे - सर आर्थर एडिंगटन ,क्योंकि उनका कहना था एक वैज्ञानिक का कर्तव्य धर्म और सरहद से ऊपर मानव सेवा और इस ब्रह्मांड का सच समझना मात्र है। सदूसरी तरफ इपरस में जहरीली गैस का इस्तेमाल जो कि बर्लिन यूनिवर्सिटी ने बनाई थी ,ये बात आईन्स्टीन से पचने वाली नहीं थी जिसका नतीजा यह हुआ कि उन्होंने बर्लिन यूनिवर्सिटी से बगावत कर दी और फिर क्या था आईन्स्टीन को निकाल फेका गया और उनपे तमाम तरह के प्रतिबंध लगा दिए गए। सदी के सबसे तेज़ दिमाग का मालिक सड़कों पर आ गया।

यही सच है आप आईन्स्टीन ही क्यों न हो आपने अपने आपको दुनिया के सामने कुछ मैट्रीयलिस्टिक गेन के रूप में साबित न किया तो आपका कोई वजूद नहीं है। आईन्स्टीन उस वक्त दुनिया मे इकलौते इंसान थे जिनके दिमाग मे मानव इतिहास का वो सवाल था जो पूरी दुनिया को देखने का नजरिया बदलने वाला था। लेकिन था तो वो मात्र एक कल्पना ही न। क्या आईन्स्टीन ने उसे सिद्ध कर दिया था? बिल्कुल नहीं। तो फिर दुनिया क्यों झुके आईन्स्टीन के सामने ? यही जीवन का सच सबके लिए सत्य है। आईन्स्टीन ने जॉब और परिवार सब खो दिया था।


लेकिन वो दिन आ ही गया। कहा जाता है यह आईडिया उनको रात के समय सड़क पर चलते हुए  एक गाड़ी के गड्ढे में से गुजरता देख के आया। अब इस आईडिया को मैथमैटिकली सही करने की जरूरत थी और उनका कोई जर्मनी में मदद कर सकता था तो वे थे मैक्स प्लैंक। गड्ढे से गुजरते गाड़ी को देख के आईन्स्टीन को ये आईडिया आया -

आईन्स्टीन ने देखा कि जब गाड़ी का एक पहिया गड्ढे से होकर गुजरा तो, हेडलॉइट से निकलने वाली लाइट भी बेंड हो गयी ( घूम गयी ) । दिमाग की बत्ती इसी घटना ने जला दी थी। स्पेस में गड्ढे(Curvature , वक्रता) है, क्यों है? भारी मास (द्रव्यमान के कारण) । जिस माध्यम में गड्ढे पड़ रहे हैं उनको नाम दिया गया "स्पेस टाइम" जो कि चौथा डायमेंशन (आयाम ) है। अगर ये सच है स्पेस टाइम में भारी मास ( जैसे सूर्य,पृथ्वी के मास से) से Curvature बन रहे हैं तो उस Curvature के पास प्रकाश बेंड होगी और वहां समय धीमा हो जाएगा। ये आईडया आया और वो प्लैंक के पास भागे।

लेकिन प्लैंक का युद्ध मे लड़का मारा गया था। प्लैंक उदास थे। लेकिन फिर भी आईन्स्टीन के साथ इस नए आईडया के लिए कैलकुलेशन करने लगे। कैलकुलेशन ने निम्न बाते सिद्ध की -

1- स्पेस टॉइम और उसमें भारी से मास से बना curve और यही कर्व ग्रेविटी का कारण है कोई अदृश्य ताकत नहीं

2- टॉइम डायलेशन और लेंथ कन्ट्रेक्शन सही है और कितना होगा इसका फॉर्मूला भी ( यानी न्यूटन चाचा का टॉइम नहीं बदलेगा गलत साबित हुआ)

3- इसपे परिकल्पना बनी स्पेस के निरन्तर प्रसार ( स्पेक्टग्राफ के डेटा से साबित किया गया इसलिये 10वी में स्पेक्ट्रम के बारे में पढ़ाया जाता है), औए अगर प्रसार है तो उसके उलट एक बिंदु पर अनन्त मास के संकुचन की ( जिसे फिजिक्स में सिंगुलैरिटी की) , ब्लैक होल की ( ब्लैक होल का केंद्र सिंगुलैरिटी )

4- उस सिंगुलैरिटी में हुए बिग बैंग की 

5- ब्लैक होल 


ये सब पब्लिश किया गया "जनरल थ्योरी आफ रिलेटविटी"  के नाम से। इसने तहलका मचा दिया। अब विज्ञान सिर्फ मैथ पर आगे नहीं बढ़ता है उसे प्रैक्टिकल प्रमाण की भी जरूरत होती है। इसे प्रैक्टिकली सिद्ध करने का एक ही तरीका था अगर ये स्पेस टॉइम करवेचर सही है तो उस करवेचर के पास निश्चित है लाइट बेंड होगी ही होगो।

 

विश्व युद्ध समाप्त हो गया था। एडिंगटन इस थ्योरी से काफी उत्साहित थे। इसपे वो टेस्ट करना चाहते थे कि यह थ्योरी सही है कि नहिं। लेकिन टेस्ट करने के लिए  उन्हें चाहिए थी एक बड़े फंड की। वो अपना प्रपोजल ले के ब्रिटिश साइंटिस्ट सोसायटी के पास। लेकिन एक जर्मन थ्योरी को टेस्ट करने के लिए फंड मिलना आसान नहीं था। एडिंगटन ने लालच दिया - 1- अगर आईन्स्टीन गलत हुए तो इतिहास में दर्ज होगा कि एक जर्मन थ्योरी जो इंग्लैंड के न्यूटन को गलत साबित कर रही थी उसे एक इंलिश वैज्ञानिक ने ही गलत साबित किया ।

2- अगर सही आईन्स्टीन सही साबित हुए तो यूनिवर्स को देखने और समझने का हमारा नजरिया बदल जायेगा।


फंड मिल गया। एडिंगटन ने तारिख चुना 1919 का सोलर एक्लिप्स ( सूर्य ग्रहण) और स्थान अफ्रीका के तट ( दक्षिणी ध्रुव उत्तरी धुर्व के मुकाबले कम बर्फीला है और दक्षिणी गोलार्ध में समुद्र ज्यादा है सो एक समान मौसम और साफ आसमान की संभावना ज्यादा है, एक भी दिक्कत मतलब 1 साल का फिर इंतजार, क्योंकि ऑब्जर्वेशन दूरबीन से होना था)


क्या था प्रयोग - अगर सूर्य के मास के वजह से स्पेस टॉइम में करवेचर बनता है तो वहां लाइट बेंड होगी ही होगी। 


और वही हुआ प्रयोग ने आईन्स्टीन को सही साबित कर दिया।


अब जो आगे होने वाला है उसी के लिए मैने इतनी कहानी लिखी है।


एडिंगटन ने अपने प्रयोग के प्रमाण का प्रदर्शन करते हुए भाषण के अंत में कहा - आय कैन हियर गॉड इज थिंकिंग ( मैं सुन सकता हूँ ईश्वर सोच रहा है)।


एडिंगटन का ईश्वर में दृढ़ विश्वास था और आईन्स्टीन की ये रिलेविटी थ्योरी ईश्वर के अस्तित्व ओर सवाल खड़े कर रही थी। कैसे ?

1- ग्रेविटी के लिए कोई अदृश्य ताकत नहीं बल्कि स्पेस टॉइम में आया कर्व जिम्मेदार है।

2- समय नियत नहीं है ( कोई धर्म इसे स्वीकार नहीं कर सकता)

3- ब्रह्मांड का विस्तार एक सिंगुलैरिटी में बिग बैंग से हुआ और इसमें निरन्तर विस्तार हो रहा है ( कोई क्रियेटर {निर्माता} नहीं है),,,इसकी परपेचयूटी (  निरंतरता ) अपने आप बनी हुई है।

स्पेकटोग्राफ प्रयोग ने यूनिवर्स के प्रसार और सिंगुलैरिटी को सही साबित किया। आज जब हमारे पास हाई प्रोफ़ाइल टेलोस्कोप है तो हमने ब्लैक होल को भी देख लिया और 2022 में जेम्स वेब टेलोस्कोप ने बिलियन इयर्स अतीत में झांक कर बिग बैंग के बाद और यूनिवर्स के बनने की शुरआत का फोटो लिया ( कैसे समझाने के लिए एक और आर्टिकल लिखना होगा , फिर कभी)


एडिंगटन पूरा जीवन अपनी ईश्वर की आस्था और विज्ञान में। सामंजस्य बैठाने में लगे रहे ।


आप निम्म तरीकों से जीवन जी सकते हैं -

1-  आपको न ईश्वर से ही कुछ लेना देना है और न ही विज्ञान क्या कह रहा है उससे आपको कोई फर्क पड़ता है। इनके आध्यात्म और विज्ञान दोनों के बल्ब बुझे हुए हैं।

2- दूसरा आप सिर्फ आध्यात्म का बल्ब दिमाग मे जलाए हुए हैं और विज्ञान आपने न कभी पढ़ा और न  आपको पढ़ने की  जरूरत ही है और पढ़ा भी तो बस स्कूल में पास होने के लिए , न रुचि है न उसके गहराई में जाना है क्योंकि आपको अपनी आस्था में सन्तुष्टि है , वही आपका सच है( ये भी जीवन का सही तरीका हो सकता है,मैं इन्हें भोले भाले लोग की श्रेणी में रख सकता हूँ)

3- जो आध्यात्म के कट्टर समर्थक है और अपने कुतर्क से बिना विज्ञान को पढ़े उसको उलजुलूल मतलब निकालकर गलत ठहराना चाहते हैं। इनको मैं महामूर्ख की श्रेणी में रखता हूँ, क्योंकि उनका अपने आस्था में विश्वास उतना ही है जितना विज्ञान के गलत होने की संभावना है। ये जीवन जीने का सबसे घटिया तरीका है ये धोबी के कुत्ते के तरह न घर के होते हैं न घाट के। अगर आपकी आस्था ईश्वर में है तो उस आस्था को विज्ञान के प्रमाण की क्या जरुरत है।  ( तमाम धार्मिक गुरु , बाबा, पादरी,मौलाना इसी श्रेणी के गुरु घंटाल है।

4- जो आध्यात्मीक है और विज्ञान भी समझते हैं। जरूरत के हिसाब से कभी आध्यात्म का बल्ब और कभी विज्ञान का बल्ब जला लेते हैं ये या तो उन चीज़ों पे सोचते ही नहीं जो एक दूसरे को कंट्राडिक्ट ( विरोधी) करती है  अवेयर नहीं है या आध्यात्म लॉजिकली फोलो करते हैं। अंध भक्त के तरह कुछ भी यकीन नहीं करते।वो हिपोक्रेट के जैसे विज्ञान की ही ईजाद की हुई चीज़ों को यूज करते हुए विज्ञान को ही झूठा साबित करने के लिए आतुर नहीं होते ।

5- जिनका दोनों बल्ब एक साथ जल रहा है। जैसे एडिंगटन का जल रहा था। एक तरफ लॉजिक उनके सामने प्रमाण रख रहा था ब्रह्मांड का जो कि ईश्वर की परिकल्पना से अलग था और उसे नकार रहा था। दूसरी तरफ वो आस्था को थामे हुए थे। इस कॉन्ट्राडिक्शन की वजह से वो आगे ज्यादा कुछ कर नहीं पाए। दोनों बल्ब का जलते रहना हानिकारक है आपको एक बल्ब बुझाना ही होगा। ये आप पर है कि सब कुछ झूठ मानकर विज्ञान का बल्ब बुझा दे या जो दिख रहा है आप उसे माने और आध्यात्म का बल्ब बुझा दें।


दिख रहा है वाले प्रमाण को उसे कुछ आध्यात्मिक गुरु बड़ी सफाई से विज्ञान पर सीधे हमला न करके कहते हैं विज्ञान सिर्फ Visible Truth (दिखाई देने वाला) है और आद्यात्म Invisible Truth ( न दिखाई देने वाला)। जो कि एक बेतुका तर्क है। जब वो Invisible Truth है तो धार्मिक किताबें क्यों ये दावा करती हैं कि फलाने ने उसे अनुभव किया था, जाना था  और  आज के धार्मिम गुरु कैसे दावा करते हैं कि वो Invisible Truth उन्होंने जान लिया है।


मेरे एक IItian दोस्त  से जब मैंने ये सब बातें कि तो उसने कहा कि हो सकता है विज्ञान वो Invisible Truth न जान पाए। मैंने उससे कहा कि विज्ञान एक Invisible Realm की परिकल्पना करता है जो है - Quantum Realm .

लेकिन वो अभी गर्भावस्था में है उसके बारे में विज्ञान के पास कहने को बहुत कुछ नहीं है। उसने तपाक से कहा कि उसे पता नहीं क्यों लगता है कि विज्ञान कभी उसकी तह तक नहीं जा पायेगा। मैंने जवाब दिया - जब विज्ञान अदृश्य प्रकाश का मासलेस फोटोंन खोज सकता है, तो ये क्यों नहीं । जिस दिन विज्ञान Quantum Realm के रहस्य सुलझाएगा उस दिन निर्णय होगा।


बहुत तनावपूर्ण बाते हो गयी, इस तनाव को कम करने के लिए एक जोक सुनाता हूँ जो उसी के सुनाए गए है-

मैने एक दिन उससे कहा कि ईश्वर क्यो मजबूरी में सच मे जब उसे मदद चाहिए नहीं सुनता ?कुछ देर चुप रहने के बाद उसने हस्ते हुए कहा विज्ञान के पास है इसका जवाब। मैंने पूछा - क्या?

उसने कहा - जब सोचो सिगूलैरिटी में जब पूरा ब्रह्मांड समाया हुआ था और उसमे धमाका हुआ तो कितना तगड़ा धमाका होगा। ईश्वर के कान सुन हो गए होंगे। वो हंसा।

मैं नहीं हँसा और कुछ देर बाद बोला की ऐसा सम्भव नहीं हैं क्योंकि जब उस समय कोई माध्यम था ही नहीं तो Sound wave ( ध्वनि तरंग) बिना माध्यम के कानो तक पंहुचा कैसे होगा?


Kashish Bagi 


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