G-GE9JD7T865 विचित्र हवा

विचित्र हवा


थोड़ी सी सूरज की किरणें चुरा कर

  रख लिया है ओट में मैंने!

रात के अंधेरों के लिए जाने कब

   तूफाँ आ जाए!

 और उड़ा ले जाए सब कुछ 

 इसी सोच में डूबा रहता है मन!

  कैसी हवा है ये

जीवन दे जाती है  जो साँसों को!

 और कभी उग्र होकर छीन लेती है

   कितनी ही साँसों को!


_ Kashish Bagi

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