विचित्र हवा
विचित्र हवा
थोड़ी सी सूरज की किरणें चुरा कर
रख लिया है ओट में मैंने!
रात के अंधेरों के लिए जाने कब
तूफाँ आ जाए!
और उड़ा ले जाए सब कुछ
इसी सोच में डूबा रहता है मन!
कैसी हवा है ये
जीवन दे जाती है जो साँसों को!
और कभी उग्र होकर छीन लेती है
कितनी ही साँसों को!
_ Kashish Bagi
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