G-GE9JD7T865 उदासी और मायूसी में फर्क

 उदासी और मायूसी में फर्क

Udasi


उदासी अपरिहार्य है जबकि मायूसी को हम चुनते हैं। उदासी तुरंत हम पर हावी हो जाती है जब भी हम खुश न हो। उदास होना ठिक वैसा ही मन का भाव है जैसे खुश होना। ये हमारी कमजोरी नहीं है जबकि इस बात का प्रतीक है कि हम अंदर से कितने जज्बातों से भरे हैं।  हम तब उदास होते हैं जब भी हम यथार्थ हो रहे सत्य के विपरीत आशाओं से भरे हो। आसान शब्दों में कहा जाए तो हर वो बात हमें कम या ज्यादा उदास करती है जो हमारे मन के उलट हो। उदासी का स्तर इस बात पर निर्भर करता है कि आपके मन के विरुद्ध हो रहे आपके नुकसान की भरपाई की संभावना कितनी है। जैसे हम परीक्षा में फेल होने पर उदास होते हैं क्योंकि उसकी भरपाई तुरंत आसानी से नहीं कि जा सकती। कोई 10 रुपया खोने पे उदास हो सकता है, कोई 100 और कोई लाख रुपये खोने पर भी उदास नहीं होता। ये निर्भर करता है कि आपका नुकसान आपके लिए कितनी अहमियत रखता हैं। दिन भर में  50 रुपया कमाने वाले के लिए 10 रुपये उदास कर सकते है और करोङो कमाने वाले को लाख रुपये खोने पर भी कुछ फर्क नहीं पड़ सकता। 

           तो कुल मिलाकर उदासी हर वो चीज़ से हमे आती है जिसकी अहमियत हमारे लिए बहुत हो और वो हमारे मन के विपरीत घटित हो रही हो।  उदास होना न आपकी कमजोरी है और न ही हमेशा खुश रहना आपकी बहादुरी। ये परिस्थितियों पर निर्भर करता है कि कोई व्यक्ति खुश है या उदास। एक ही तरह की समान घटना विपरीत परिस्थितियों में भिन्न भिन्न लोगों को खुश या उदास दोनों कर सकती हैं।

           उदाहरण के तौर पर कुछ साल पहले मैं किसी शेर द्वारा किसी हिरण का शिकार करते वीडियो देख कर हिरण के लिए  दया महसूस करता था और इसके साथ ही उदासी हावी होती। मैं सोचता था कि ये वाइल्ड लाइफ फ्रोटोग्राफर शोर मचा कर शेर को भगा क्यों नहीं देते वीडियो क्यों शूट करते रहते है। वो दावा तो जानवरों की रक्षा और आबादी बढाने की करते हैं। फिर क्यों इतने आराम से देखते रहते हैं? लेकिन अब समझता हूँ कि वो प्रकृति के करीब हैं और प्रकृति के नियमों से प्रेम करते है। वो इन नियमों में इंसानी दखल अंदाजी का वीरोध करते हैं। शेर तो शिकार करेगा ही और हर रोज करेगा उसके जिंदा रहने के लिए ये जरूरी है। आम इंसान के लिए जो उदास होने का विषय है वो उस विषय को करीब से समझने वाले के लिए साधारण सी बात है।

           कुल मिलाकर आप ये नहीं कह सकते कि ये निम्न विषय हैं जो किसी को उदास बनाते हैं और ये निम्न विषय हैं जिनपे आप खुश हो सकते हैं। ये सब। निर्भर करता है आपके उम्मीदों पर । 100 में 98 नम्बर किसी को उदास कर सकते हैं कि 2 कहां रह गए जबकि 100 में 50 किसी को बहुत खुश कर सकते हैं कि चलो 33 से कम तो नहीं रहे।

           इंटरनेट पर खुश रहने वाले तरीकों की भरमार है - Positive Motivation के नाम पर। वो मोटिवेशन हो सकता है लकिन सकारात्मक (Positive) तो कतई नहीं। जीवन में दुख और सुख दोनों होंगे । किसी का भी जीवन बिल्कुल दुखी या बिल्कुल सुखी कभी भी नहीं हो सकता। देखने वाले के नजर में किसी का जीवन बिल्कुल सुखी या बिल्कुल ही दुखी हो सकता है लेकिन ये हकीकत नहीं है। सबसे अमीर और सम्पन व्यक्ति भी उदास हो सकता है और सबसे गरीब व्यक्ति भी खुश हो सकता है। एक ही बारिश किसी को रोमांटिक लग सकती है जबकि वही किसी के छत से टपकता बारिश या किसी की खड़ी फसल को बर्बाद कर देने वाला बारिश उसको दुखी कर  सकता है। धूप मेढक को उदास कर सकता है लेकिन सांप के लिए अवसर है खुशी है। इसलिए जब आप उदास हों तो स्वीकार करिए कि आप उदास हैं हीरोगिरी मत दिखाईये। ये कमजोरी नहीं ताकत है। अगर सारी दुनिया ने एक झटके में उदास होना छोड़ दिया तो ये दुनिया के लिए बूरा है। आप कल्पना ही कर लीजिए हिटलर लाखों लोगों को मार रहा है और उसके इस कारनामे से कोई उदास होने वाला नहीं बचा। लोग भूखे मर रहे हैं लेकिन ब्रेड पर मक्खन मलती दुनिया को कोई फर्क नहीं पड़ता। किसी की आंखे नम नहीं हो रही। कोई उदासी से बेचैन नहीं हो रहा। ऐसी दुनिया बहुत ही डरावनी होगी। 

           

           अब बात आती है मायूसी । आम तौर पे सिर्फ भाषा के आधार पर ही कहा जाए तो मायूसी तो उदासी का ही पर्यायवाची है। लेकिन उसी भाषा का एक सिद्धान्त ये भी कहता है कि पर्यायवाची नाम की कोई चीज़ होती ही नहीं। आसान शब्दों में कहा जाए तो किसी भी शब्द का कोई दूसरा शब्द कभी भी पूर्णतया पर्यायवाची नहीं होता ।  आप "पानी" के बदले "जल" शब्द का उपयोग कर सकते हैं लेकिन आपको ये कहना है कि 'वो अपनी बातों से "पानी-पानी" (शर्मिंदा) हो गया' इसके बदले आप ये नहीं कह सकते कि 'वो अपनी बातों से "जल-जल" हो गया।' अर्थ का अनर्थ हो जाएगा । पर्यायवाची की यही सीमा है। 

           ठीक ऐसे ही मायूसी और उदासी में फर्क है। उदासी का मतलब है खुशी का अभाव जबकि मायूसी का मतलब है उदासी और ना-उम्मीदी।

           उदासी = खुशी का अभाव 

           मायूसी = नाउम्मीदी + उदासी

आप आज उदास हैं कल खुश भी हो सकते हैं ये सत्य है और प्राकृतिक एवम नियमवत  है। आप इसका चुनाव नहीं कर सकते ये आपकी परिस्थितियाँ तय करती हैं। लेकिन आप उदास के साथ उम्मीद को मार दे तो ये मायूसी है और इसका चुनाव आप खुद करते हैं। आप उदास होते हैं क्योंकि आपके जीवन मे उम्मीदें है और वो उम्मीदें इच्छाओं में बदल जाती है। इच्छाओं के पूरा न होने पर आप उदास होते हैं और आपकी उदासी का स्तर इस बात से तय होता है कि आपके लिए वो इच्छाएं कितनी जरूरी थी।

          


इस्लाम के अनुसार "मायूसी कुफ्र है" यानि मायूस होना एक ऐसा पाप है जो ईश्वर की सत्ता के खिलाफ बगावत करने बराबर है। इस बात का मुझपे गहरा असर था, कुछ साल पहले तक मैं जब भी उदास होता था ये बात मेरे दिमाग मे आती थी और मैं तुरन्त खुद को चीयर अप करने की कोशिश करने लगता था।  ध्यान दीजिए मैं जीवन मे कभी मायूस नहीं हुआ हूँ , हां उदास होता रहता हूँ जैसे सब होते हैं। मैं मायूसी और उदासी का फर्क नहीं जानता था और मैं जब भी उदास होता मुझमे ग्लानि की भावना आ जाती थी कि मैं कैसे उदास हो सकता हूँ। जब कुछ बड़ा हुआ तो लगा कि ये कितनी वाहियात बात है कोई व्यक्ति कैसे उदास नहीं हो सकता।लेकिन ये तो अपरिहार्य है न। उदास होना वैसे ही जीवन का एक हिस्सा है जैसे खुश होना। लेकिन इस एक पंक्ति का फलसफा मुझे काफी देर से समझ आया।


उदास हुआ जा सकता है लेकिन नाउम्मीद नहीं हुआ जा सकता है। उदास हो कर आप दुनिया को डरावना होने से बचा रहे हैं। ये प्रमाण है कि भावना मरी नहीं है। आप उदास हैं तो किसी फालतू मोटिवेशन के चक्कर मे मत पड़िये। उसे स्वीकार करिए। आपको उदासी में जो करना अच्छा लगता है वो करिए- सोना, खाना न खाना, रोना, कहीं घुमने जाना। जो मर्जी आये वो करिये लेकिन उम्मीद को मत मारिये। आज आप उदास है लेकिन कल आपको उम्मीद ले के चलना है। 



आपको पता है मायूसी को कुफ्र कहने में भी बड़ा वजह है। क्योंकि मायूस व्यक्ति खिलाफ हो जाता है, खुद के या अपने परिवार के या समाज के या फिर उस ईश्वर के। तो इसे पहले ही पाप बता कर इससे बचने की सलाह  दे दी गयी।  ये सलाह देने वाला मायूसी की नकारात्मकता को भली भांति जानता है।



_ काशिश बागी





           


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