जब क्रिकेट का कत्ल हुआ ( दक्षिण अफ्रीका बनाम इंग्लैंड) - 1992 वर्ल्डकप सेमीफाइनल
जब क्रिकेट का कत्ल हुआ ( दक्षिण अफ्रीका बनाम इंग्लैंड) - 1992 वर्ल्डकप सेमीफाइनल
आज भारत अपने पहले मैच में पाकिस्तान के हाथों 10 विकेट से हार गया। पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ वर्ल्डकप में अपनी पहली जीत दर्ज की। उनके क्रिकेट के इतिहास में ये एक ऐतिहासिक दिन दर्ज हो गया। भारत की यह हर 10 साल पहले हुई होती तो शायद हफ्ते भर इसका गम नहीं भुला जाता। लेकिन आज रत्ती भर भी गम नहीं है जिसके कइ कारण हो सकते हैं पहला ये की अब जिंदगी में क्रिकेट के अलावा भी कई अहम मुद्दे हैं, दूसरा ये की मौजूदा भारतीय टीम में अपना कोई पसन्दीदा खिलाड़ी भी नहीं था जिसपे जी भर के गुस्सा आये की ससुरा उ भी ठीक से नहीं खेला ( धोनिया मेंटर था ) । Last but not the least हमेशा तो जीतते ही थे एक बार हार गए तो क्या हुआ ( हमको मालूम है हकीकत लेकिन गालिब मन बहलाने को ये ख्याल अच्छा है)
मुझे धोनी के बाद किसी को खेलते हुए देखना पसंद है तो वो है AB Deviliers. क्या गज़ब का खिलाड़ी है ,जब फ़ॉर्म में वो आ जाये तो नजरें स्क्रीन से हटती ही नहीं। यही कारण है कि जब वर्ल्ड कप में भारत की दावेदारी खत्म होती दिखती है तो मैं अपना दूसरा टीम दक्षिण अफ्रीका को जीतते हुए देखना चाहता हूँ( जो कभी हुआ नहीं)।
क्रिकेट के इतिहास में 1992 के दूसरे सेमीफाइनल इंग्लैंड बनाम दक्षिण अफ्रीका जिसमें अफ्रीका हार के बाद समझो इमोशनलेस हो गयी थी। मेरी नजर में वो क्रिकेट इतिहास के सबसे काले दिनों में एक था।
तो उस काले दिन की पूरी कहानी ये है -
दक्षिण अफ्रिकी क्रिकेट टीम पर वहां के Apartheid Laws के चलते 22 सालों से प्रतिबंध लगा हुआ था। ये वो Laws थे जो अफ्रीका के मूल निवासी ( Black People ) , भारतीय व पाकिस्तानी लोगों से भेद भाव के लिए बनाए गए थे। White people का ये मानना था कि वो दक्षिण अफ्रीका के मूलनिवासी हैं।
[ नोट - अफ्रीका भी पहले ब्रिटेन का गुलाम था और तब ब्रिटिश भारत से मजदूर काम की तलाश में अफ्रीका जाते थे( जिनके लिए गांधी जी ने अफ्रीका में आंदोलन किया था),उनके वंशज आज भी वहां रहते हैं।
1992 का वर्ल्डकप Australia और Newzealand में होने वाले थे। दक्षिण अफ्रीका का इसमें भी खेलना मुश्किल ही था। लेकिन African National Congress के नेता नेल्सन मंडेला ने ICC से उनके खेलने की मांग की। ICC ने मंजूरी इस शर्त पे दी कि आगामी चुनाव के बाद नई सरकार Apartheid Laws खत्म कर देगी। लेकिन मसला ये था कि चुनाव वर्ल्डकप के बीच मे होने वाले थे। इसका हल ये निकाला गया कि दक्षिण अफ्रीका चुनाव से पहले के सारे मैच खेलेगी और चुनाव बाद अगर ये Laws खत्म नहीं हुए तो दक्षिण अफ्रीकन टीम को बीच टूर्नामेंट से वापस भेज दिया जाएगा।
दक्षिण अफ्रीका के लिए खोने के लिए कुछ भी नहीं लेकिन पाने के लिए बहुत कुछ था। वो ये बात जानते थे कि उनका कोई भी मैच उनके जीवन का आखरी अंतरराष्ट्रीय मैच हो सकता है। यही कारण था कि अफ्रीकी टीम ने अपने हर मैच में अपनी जान लगा दी और एक के बाद एक मैच जीतते गए। दक्षिण अफ़्रीका सेमीफाइनल में पंहुच गया था लेकिन उनका सेमीफाइनल खेलना अभी भी तय नहीं था क्योंकि चुनाव सेमीफाइनल से पहले ही होने वाले थे। उधर वो मैदान पर अपने वजूद के लिए लड़ रहे थे और इधर उनके घर मे अधिकारोँ की लड़ाई जारी थी। करीब 68% अफ्रीकी लोगों ने वो Laws खत्म करने की मांग की। चुनाव जीतने के बाद मंडेला ने अपने ऐतिहासिक भाषण में ये कहते हुए सारे Aparthied Laws खत्म कर दिए कि - " वो कानून खत्म किये जाते हैं जो एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति पर अत्याचार को बढ़ावा देते हैं "।
दक्षिण अफ्रीका का ये पुनर्जन्म , उनकी टीम के लिए इतिहास बनाने का मौका था। सेमीफाइनल का दिन और दक्षिण अफ्रीका के कप्तान ने टॉस जीतकर पूरी दुनिया को चौंकाते हुए गेंदबाजी करने का फैसला लिया। सबको इस बात पर हैरानी थी । ( हैरानी की वजह ये थी कि उस वर्ल्ड कप में एक नया Rain Rule बनाया गया था जिसके अनुसार बारिश से बाधा वाले मैच में दूसरी पारी में जो रन और ओवर दिए जाएंगे वो पहली पारी के ओवर और रन में से सबसे कम रन वाले ओवर को सबसे पहले हटाये जाएंगे यानी कि पहली पारी में 50 ओवर में 300 रन बने जिसमे से की 20 ओवर मेडन ओवर थे तो दूसरी पारी को रन चेज़ देते वक्त पहले ये 20 ओवरों के रन हटाये जायँगे यानी जी zero अर्थात दूसरी पारी को 30 ओवर में ही 300 रन चेज़ करने होंगे )
दूसरा ये रूल था कि उस समय क्रिकेट मैच की टीवी पर ब्रॉडकास्टिंग की शुरुआत हुई थी। Organizers को Broadcasting rights देने के बदले ढेर सारा पैसा मिलता था और Broadcasting वाले ही मैच का समय तय करते थे यानी कि तय समय मे जितने Overs होते थे उतने पर ही मैच रोक दिए जाते थे।
अफ्रीका ने तय समय (6:10) तक 45 ओवर्स ही Bowling किया, समय सीमा (6:10) खत्म होने की वजह से ही 45 ओवर्स पर ही पारी खत्म कर दी गयी। समय बढ़ाने के पैसे लगते थे लेकिन पैसों के आगे एक वर्ल्डकप के सेमीफाइनल का मजाक बना कर रख दिया गया। इंग्लैंड ने 45 ओवर्स में 232 रन बनाए , उनको उनके Slog overs नहीं मिले थे। मजबूत दक्षिण अफ़्रिका के सामने 232 रन , उनके फाइनल खेलने के सपने पर पानी फेरने जैसा था। इंग्लैंड टीम गुस्से में थी और उन्होंने अपना गुस्सा खेल में दिखाया। दक्षिण अफ्रीका के एक के बाद एक विकेट गिरते गए। दक्षिण अफ्रीका 27 ओवर्स में 131 /4 तक पहुंच गई। लेकिन इंग्लिश टीम के सामने खड़ी थी दक्षिण अफ्रीका की एक नईं टीम । उन्होंने शानदार वापसी किया। Andrew Hudson के 46 , Adrian Kuiper के 36 और Jonty Rhodes के 43 के बदौलत दक्षिण अफ्रीका जीत की पटरी पे आ गयी। Rhodes( सर्वकालिक महान Fielder) आउट हुए। Brian McMillan और David Richardson ने आगे की पारी को सम्भाला और उनकी साझेदारी के बदौलत दक्षिण अफ्रीका को जीत के लिए 13 गेंदों में 22 रन चाहिये थे। तभी बारिश की शुरआत हुई। मैच रुक गया। सारी दुनिया की निगाहें इस उम्मीद में थी कि मैच फिर से शुरू हो और इस रोमांचक मुकाबले का नतीजा देखने को मीले। लेकिन वही नियमों की बाधा -Broadcasters ने दूसरी पारी की समय सीमा 10:20 तय कर रखी थी। बारिश के बाद समय कम था। Rain rule के हिसाब से पहले ये तय हुआ कि अब 7 गेंदों में 22 रन बनाने होंगे तब भी दक्षिण अफ्रीका की टीम उत्साहित और जोश से भरी हुई थी लेकिन मैदान पे जाने से पहले उनको बताया गया कि 1 गेंद में 22 रन बनाने होंगे। मैदान पर दोबारा जाते समय Brian McMillan और David Richardson एक दूसरे को बिना किसी भाव के देख रहे , उनको अंजाम पता था। यहां तक कि इन घटिया नियमों से इंग्लिश कप्तान भी खुश नहीं था उसके Request के बाद भी समय सीमा नहीं बढ़ाई गई। Ball फेंकी गई ,Brian McMillan ने पुश किया और एक रन लिया। मैच 10:20 से 2 मिनट पहले 10:18 पर ही समाप्त हो गया। न हारने वाला खुश था न जितने वाला। ये हार अफ्रीका की नहीं क्रिकेट की हार थी और ये जीत इंगलैंड की कतई नहीं थी। दक्षिण अफ्रीका की टीम ने पूरे शालीनता से दर्शकों का अभिवादन किया और नियम को स्वीकार किया और एक विजयी टीम के तरह पूरे स्टेडियम का चक्कर लगाया। इंगलैंड के खिलाड़ी भी उनके जज्बे और हिम्मत के लिए तालियाँ बजाए।
उस साल फाइनल मैच पाकिस्तान ने इंग्लैंड को हराकर के जीता लेकिन उस वर्ल्डकप जीत की असल हकदार दक्षिण अफ्रीका थी। पिछले साल भी Newzealand फाइनल के जीत की हकदार थी लेकिन उलजुलूल नियमों की वजह से इंग्लैंड फाइनल ले गया। उम्मीद करता हूँ इस बार का फाइनल वही जीते जो उसका असली हकदार हो।
By - Kashish Bagi
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